Kashi Vishwanath Case. Why This case is important for Hindus? History Evidence & Importance — Part 2

Shivashish Yadav
7 min readApr 13, 2021

काशी विश्वनाथ केस / Kashi Vishwanath Case — Part 1

काशी विश्वनाथ केस / Kashi Vishwanath Case — Part 2

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यहाँ लिखी हुई सारे तथ्य सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया है। सारे तथ्य लिखित ,रिकार्डेड और इसके ऊपर कोर्ट द्वारा Judicial Pronouncement पहले से है। सारे तथ्यों की Authentic Legal Value है।

Indian Evidence Act के Section — 57 के तहत ऐतिहासिक किताबो की Legal Value होती है , और कोर्ट उसकी Judicial Notice ले सकता है। (अयोध्या केस में भी ऐसे बहुत से किताबो को सीधे सुप्रीम कोर्ट में दोनों पक्षों द्वारा दाखिल किया गया था , जब इसपे विवाद उठा तो सुप्रीम कोर्ट ने Detailed Order पास कर के ये बाते बतायी थी )

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1193 में प्रथम बार कशी विश्वनाथ मंदिर को मो. बिन गौरी के कमांडर कुतबदीन ऐबक द्वारा तोड़ा गया था।

फिर 1585 में राजा टोडरमल जो की अकबर के 9 रत्नो में से एक थे उन्होंने इसको बनवाया।

फिर औरंगजेब ने 1669 में फरमान जारी कर के काशी विश्वनाथ मंदिर को ऐसे ध्वस्त करवा दिया।

औरंगजेब का फरमान

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सबसे पहली बात ये फरमान आज के समय में आया कहाँ से ? यह फरमान The History of India, as Told by Its Own Historians By : Henry Miers Elliot & John Dowson के 8-Volume के किताब के Volume-7 से लिया गया है।

इनके पास में औरंगजेब की Original फरमान सुरक्षित थी। इन्होने Volume-7, Page No-183 पर उस फरमान को कोट किया है।

“On the 17th Zi-l kada 1079 (18th April 1669), it reached the ear of His majesty, the protector of the faith, that in the provinces of Thatta, Multan and Benaras, but specially in the latter, foolish Brahmins were in the habit of expounding frivolous books in their schools, and the students and learners, Mussulmans as well as Hindus, went there, even from long distances, led by desire to become acquainted with the wicked sciences they taught. (Emphasis added to show cause)

“The “Director of the faith” consequently issued orders to all the governors of provinces to destroy with a willing hand the schools and temples of the infidels; and they were strictly enjoined to put an entire stop to the teaching and practicing of idolatrous forms of worship. On the 15th Rabi-ul Akhir (2/09/1669) it was reported to his religious Majesty, the leader of the unitarians, that, in obedience to the order, the Government officers had destroyed the temple of Bishwanath at Benaras.”

अगर आज के डेट में Archeological Survey न भी हो तो इसके साक्ष्य मौजूद है की वहाँ मंदिर थी जिसे तोडा गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने और इलाहाबाद कोर्ट ने ये बात दीन मोहम्मद के केस(जिसे मै आगे बताऊंगा ) 1942 SCC OnLine Allahabad/ Page №56 के Paragraph-5 में ये HOLD किया है की यहाँ मंदिर तोड़ी गई है

और Paragraph-16 में HOLD किया है की यह वक्फ सम्पति नहीं है।

इसके बाद जब काशी विश्वनाथ एक्ट आया तो उसको सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया जिसमे जस्टिस रामास्वामी ने कहा है की यहाँ पर मंदिर थी जिसे तोड़ा गया है।

1669 के बाद काशी विश्वनाथ का क्या हुआ।

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Anant Sadashiv Altekar जो की historian, archaeologist, and numismatist थे और Head of the Department of Ancient Indian History and Culture at Banaras Hindu University थे।

बाद में इन्हे काशी विश्वनाथ से जुड़े एक केस में गवाही के रूप में लाया गया था। इन्होने History Of Benaras में लिखा है की

“1669 के बाद जो मस्जिद का पूर्व का भाग है वहाँ 125 फुट का हिन्दू मंडप है ,और वो हिन्दुओ के अधिकार में है, जो पार्ट मंडप का मस्जिद के आँगन तक है वो भी हिन्दुओ के अधिकार में है. मस्जिद के पश्चिम भाग में माँ श्रृंगार गौरी की पूजा होती है , और जो प्राचीन मंदिर था वो आज भी मस्जिद के अंदर है और उसके चिन्ह और अवशेष आज भी मिलते है। “

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‘इसके बाद 1777 -80 में अहिल्या बाई होल्कर जी ने मंदिर का निर्माण करवाया जिसे काशी विश्वनाथ मंदिर का नाम दिया गया ।

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इसके बाद 1809 -10 में ज्ञानवापी के पुरे क्षेत्र को हिन्दुओ ने फिर से कब्ज़ा कर लिया 30–12–1810 को वाराणसी के DM Watson ने President Council को पत्र लिखा की

“Suggesting the handover the Gyanwapi Area to hindus forever”

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इसके बाद 1822 में Benares Illustrated Book by James Prinsep ने लिखा है की

“हिन्दू आज भी मस्जिद के चौखट पर पूजा करते है और मानते है की उनके देवता आज भी उस स्थान पर अदृश्य रूप में मौजूद है। “

M.A. Sherin ने भी अपने किताब में लिखा है की “ उस स्थल पर मंदिर के ध्वस्त अवेशष आज भी नंगी आँखों से देखे जा सकते है “

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दीन मोहम्मद केस

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इसके बाद बनारस के रहने वाले दीन मोहम्मद ने Civil Suit कोर्ट में दाखिल किया। Civil Suit 62 of 1936 में किया की जो सेटलमेंट प्लाट -9130 को (वास्तविक काशी विश्वनाथ का पूरा एरिया Revenue Record में 9130 के नाम से जाना जाता है. ) वक्फ प्रॉपर्टी declare किया जाये और उन्हें नमाज पढ़ने का पूरा अधिकार दे दिया जाये।

दूसरा पक्ष इस केस में ब्रिटिश सरकार थी , हिन्दुओ ने जब इस केस में पक्ष बनने की बात की तो उसे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ख़ारिज क्र दिया गया।

ब्रिटिश सरकार ने लिखित रूप में कोर्ट में हलफनामा दायर किया और Paragraph -2 में यह लिखा की यह परिसर वक्फ प्रॉपर्टी नहीं है। (यहाँ आप को जान लेना चाहिए की किसी Valid मस्जिद होने के लिए कोई भी स्थान वक्फ संपत्ति होना चाहिए )

Paragraph -11 में लिखा है की यहाँ की मूर्तिया मुगलकाल के पहले से यहाँ है।

Paragraph -12 इस सम्पत्ति का मालिक औरंगजेब नहीं था।

और इस्लामिक law के मुताबिक यह अल्लाह को Dedicate नहीं किया जा सकता।

दावेदारों की ओर से सात, ब्रिटिश सरकार की ओर से 15 गवाह पेश हुए थे। सब जज बनारस ने 15 अगस्त 1937 को मस्जिद के अलावा ज्ञानवापी परिसर में नमाज पढऩे का अधिकार नामंजूर कर दिया था।

दीन मोहम्मद इससे खुश नहीं हुए और फिर उन्होंने हाई कोर्ट में Suit दायर किया जिसका Appeal No -466 of 1937 जिसका फैसला आया 1942 SCC OnLine Allahabad/ Page №56 के Paragraph-5 में ये HOLD किया है की यहाँ मंदिर तोड़ी गई है।

और Paragraph-16 में HOLD किया है की यह वक्फ सम्पति नहीं है.

और नमाज पढ़ लेने से किसी स्थान पर आप का उस पर हक़ नहीं हो जाता।

आप पूरा केस यहाँ पढ़ सकते है — t.ly/axHU

काशी विश्वनाथ एक्ट -1983

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जो की उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पास एक्ट है।

Section 4, Sub clause 9-

“‘Temple’ means the Temple of Adi Vishweshwar, popularly known as Sri Kashi Vishwanath Temple, situated in the City of Varanasi which is used as a place of public religious worship, and dedicated to or for the benefit of or used as of right by the Hindus, as a place of public religious worship of the Jyotirlinga and includes all subordinate Temples, Shrines, sub- shrines and the ashthan of all other images and deities, mandaps, wells, tanks and other necessary structures and land appurtenant there to and additions which may be made there to after the appointed date.

Section 5 — Declares that ownership of the Temple and its endowment shall vest in the deity of Sri Kashi Vishwanath. “Temple” has been defined under Section 4(9)

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मुस्लिम पक्षकार बोलते है की यह केस Places Of Worship ACT 1991 के वजह से बाहर होना चाहिए , लेकिन तर्क यह है की यह एक्ट आने से पहले ही वहाँ की संपत्ति भगवान की मान ली गयी है। ब्रिटिश सरकार द्वारा, उत्तर प्रदेश सर्कार द्वारा और सुप्रीम कोर्ट द्वारा। तो उस पर पूरा हक़ भगवान विश्वेश्वरनाथ का पहले से ही है 1991 का एक्ट तो बाद में आया।

इसके बाद काशी विश्वनाथ एक्ट को मुस्लिम पक्षकार द्वारा चुनौती दी गयी पहले हाई कोर्ट में फिर सुप्रीम कोर्ट में गया जिसमे कोर्ट के Judgement Citation 1997 Of 4 SCC Page No 606 के Paragraph-1 में वह सब लिखा है जो इतिहास मैंने आप को शुरुआत से बताई है।

इसके बाद वह अविमुक्त क्षेत्र है और उसमे हिन्दुओ का क्या विश्वास है यह सब जस्टिस रामास्वामी ने अपने judgement में व्रिस्तृत रूप से समझायी है।

जिसे आप यहाँ पर पढ़ सकते है। — — t.ly/nikT

और इस एक्ट के Constitutional Validety को uphold किया है.

Places of Worship Act के तहत यह prove होता है की 1947 में काशी विश्वनाथ परिसर का धार्मिक स्वरूप मंदिर का था और यह हिन्दुओ की जगह है।

इसलिए कोर्ट ने Archaeological Survey of India को वहाँ फिर से जांच करने को कहा है। Archeological Survey के Direction के Page №11 के Paragraph 5 में लिखा है की

“The purpose of the archaeological survey shall be to find out as to whether the religious structure standing at the present and disputed site is a superimposition, alteration or addition or there is structural overlapping of any kind. If so, then what exactly is the age, size, monumental and architectural design or style of the religious structure, and what material has been used for building the same”

अब मुस्लिम पक्षकार इसे रोकने में लगे है और चाहते है वहा पुरातत्व सर्वेक्षण न हो। अगर आप सच है तो डर किस बात का है? हो जाने दीजिये जांच तर्क से भाग सकते है लेकिन सच को बदला नहीं जा सकता। 1998 से यह केस मतलब 23 साल से हाई कोर्ट में अटका हुआ था, किस समाज और धर्म के लोगो में इतना सयम है की वो इतनी शांति से इंतजार करे।

और सच की जब भी बात होती है मुस्लिम पक्षकार 1991 Places of Worship Act की आड़ ले लेते है और कोर्ट से स्टे ले ले रहे थे । इतना समय बर्बाद करने का मतलब क्या है? सीधे और साफ़ बात यह है की ये आज भी औरंगजेब को अपना शहंसाह/ बादशाह /पूर्वज मानते है और उसके किये गए फैसले को किसी भी तरह बनाये रखना चाहते है। नहीं तो मुस्लिम पक्षकार के खड़े होने का कोई मतलब बनता ही नहीं है।

पर याद रहे यहाँ बाबा आदि विश्वेश्वरनाथ साक्षात रूप में विद्यमान है , और हर दशा में चाहे आप जो भी कर ले अंत में जीत उनकी ही होगी।

हर हर महादेव। …..

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Shivashish Yadav
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